उपसर्ग-प्रत्यय
शब्द रचना(word formation)
वर्ण के सार्थक समूह को शब्द कहते हैं
व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द के तीन भेद होते है – रूढ़ यौगिक और योगरूढ़। मूलत:शब्द के दो भेद ही भेद होते हैं- रचना की दृष्टि से यौगिक और योगरूढ़ समान होते हैं रूढ़ के हम खंड नही कर सकते हैं अत: रचना में यौगिक ही रह जाते हैं जिनसे हम शब्द रचना कर सकते हैं।
यौगिक शब्दो की रचना तीन प्रकार से होता है – उपसर्ग से प्रत्यय से और समास से।
उपसर्ग से: अति (उपसर्ग)+अंत (मूल शब्द/धातु)+अत्यंत (यौगिक शब्द)
प्रत्यय से : लेन (मूल शब्द)+ दार ( प्रत्यय) + लेनदार (यौगिक शब्द)
समास से : प्रति (शब्द)+ दिन (शब्द)+ प्रतिदिन (यौगिक और)
कभी कभी एक ही मूल शब्द में उपसर्ग एवं एवं प्रत्यय दोनो का प्रयोग होता है जैसे –
समझ (मूल शब्द) + दार (प्रत्यय) + ई= समझदारी
उपसर्ग (prefixes)
उपसर्ग=उप (समीप)+सर्ग (सृष्टि करना) का अर्थ है – किसी शब्द के समीप आ नया शब्द बनाना।
जो शब्दांश शब्दों के आदि में जुड़ कर उनके अर्थ में कुछ विशेषता लाते हैं वे उपसर्ग कहलाते हैं।
हार शब्द का अर्थ है पराजय। परंतु इसी शब्द के आगे प्र शब्दांश को जोड़ने से नया शब्द बनेगा – प्रहार (प्र+हार) जिसका अर्थ है चोट करना। इसी तरह आ जोड़ने से आहार (भोजन) सम जोड़ने से संहार (विनाश) तथा वि जोड़ने से विहार (घूमना) इत्यादि शब्द बन जायेंगे।
उपरोक्त उदाहरण में प्र,आ, सम और वि का अलग से कोई अर्थ नहीं है परंतु हार शब्द के आदि में जुड़ने से उसके अर्थ में इन्होने परिवर्तन कर दिया है। इसका मतलब हुआ कि ये सभी शब्दांश है और ऐसे शब्दांशो को उपसर्ग कहते हैं।
हिंदी में प्रचलित उपसर्गो को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है –
- संस्कृत के उपसर्ग (संख्या 22)
- हिंदी के उपसर्ग (संख्या 13)
- उर्दू और फारसी के उपसर्ग (संख्या 19)
- अंग्रेजी के उपसर्ग
- उपसर्ग के समान प्रयुक्त होने वाले संस्कृत के अव्यय।
जैसे – उपसर्ग अर्थ शब्द
अति अधिक अत्यधिक, अत्यंत, अतिरिक्त, अतिशय
अधि ऊपर, श्रेष्ठ अधिकार, अधिपति, अधिनायक
प्रत्यय=प्रति (साथ में पर बाद में)+अय(चलने वाला)
शब्द का अर्थ है पीछे चलना।
जो शब्दांश शब्दों के अंत में जुड़कर उनके अर्थ में विशेषता या परिवर्तन ला देता है,वे प्रत्यय कहलाते हैं, जैसे दयालु=दया शब्द के अंत में आलु जुड़ने से अर्थ में विशेषता आ गई है।
अतः यहां आलु शब्दांश प्रत्यय है।
प्रत्ययो का अपना अर्थ कुछ भी नही होता और न ही इनका प्रयोग स्वतंत्र रूप से किया जाता है।
प्रत्यय के दो भेद है –
- कृत प्रत्यय
- तद्विद प्रत्यय
वे प्रत्यय जो धातु में जुड़े जाते हैं, कृत प्रत्यय कहलाते हैं। कृत प्रत्यय से बने शब्द कृदांत (कृत+अंत)
शब्द कहलाते हैं। जैसे लेख+अक = लेखक। यहां अक कृत प्रत्यय है तथा लेखक कृदांत शब्द है।
वे प्रत्यय जो धातु को छोड़कर अन्य शब्दों – संज्ञा, सर्वनाम व विशेषण में जुड़ते हैं, तद्वित प्रत्यय कहलाते हैं। तद्वित् प्रत्यय से बने शब्द तद्वितांत शब्द कहलाते हैं। जैसे सेठ+आनी= सेठानी। यहां आनी तद्वित प्रत्यय है तथा सेठानी तद्वितांत शब्द है।
प्रत्यय मूल शब्द/धातु उदाहरण
अक लेख, पाठ, कृ, गै लेखक, पाठक, कारक, गायक